जानिए उत्तराखंड में कहां बजरंग बली ने रूप बदलकर गुरु गोरखनाथ का रोका था मार्ग…

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कोटद्वार: देश के देवभूमि कहलाते उत्तराखंड की पवित्र भूमि में पौराणिक खोह नदी के किनारे स्थित है श्री सिद्धबली धाम। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि हर समय यहां देश-विदेश से आए भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। ऐसे भी माना जाता है कि कलियुग में सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान है हनुमानजी।

उन्हीं हनुमानजी को समर्पित इस मंदिर की चलिए जानें खास बात…

ऐसे देशभर में हनुमानजी के कई चमत्कारी मंदिर है, जहां जाने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मगर उत्तराखंड के पौड़ी क्षेत्र में कोटद्वार नगर से करीब ढाई किमी. दूर, नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगा पवित्र श्री सिद्धबली हनुमान मंदिर का महत्व सबसे अधिक है। खास बात है कि खोह नदी के किनारे पर करीब 40 मीटर ऊंचे टीले पर ये मंदिर स्थित है। यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, जिनकी मनोकामना पूरी होती हैं वे भक्त भंडारा करवाते हैं।

दरअसल यहां से कोई भक्त आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। इसलिए भक्तों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यहां होने वाले विशेष भंडारों की बुकिंग फिलहाल 2025 तक के लिए पूरी हो गई है। यहां जनवरी-फरवरी, अक्टूबर-नवंबर व दिसंबर माह में रोज भंडारे का आयोजन होता है, जबकि अन्य माह में मंगलवार, शनिवार व रविवार को भंडारा रहता है। खास बात है कि भारतीय डाक विभाग की ओर से भी साल 2008 में मंदिर के नाम एक डाक टिकट जारी किया गया था। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में गुड़, बताशे और नारियल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरु गोरखनाथ को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा भी कहा जाता है। गोरखपुराण के अनुसार, गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ पवन पूत्र बजरंग बली की आज्ञा से त्रिया राज्य की शासिका रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे। जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरु को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े।

इसी स्थान पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरु गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब दोनों में से कोई पराजित नहीं हुआ तो हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आए और गुरु गोरखनाथ से वरदान मांगने कहा। जिस पर उन्होंने हनुमानजी से यहीं रहने की प्रार्थना की थी। गुरु गोरखनाथ व हनुमानजी के कारण ही इस स्थान का नाम ‘सिद्धबली’ पड़ा। आज भी ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी प्रहरी के रूप में भक्तों की मदद को साक्षात रूप से यहां विराजमान हैं।

इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता भी प्रचलित है कि ब्रिटिश शासन काल में एक मुस्लिम ऑफिसर इस क्षेत्र से गुजरा जो यहीं सिद्धबली मंदिर में ही रूका था। उस ऑफिसर को सपना आया कि सिद्धबली बाबा की समाधि के पास ही मंदिर बनाया जाए। जिसके बाद क्षेत्र के लोगों ने यहां मिलकर मंदिर बनवा दिया। ऐसे पहले ये मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं था। मगर धीरे-धीरे श्रद्धालुओं के सहयोग से ये मंदिर भव्य हो गया है।

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