चमोली: भगवान नारायण के विश्व प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ में हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। धाम के कपाट साल में 6 माह के लिए बंद रहते हैं, जबकि दर्शन के लिए 6 माह के लिए खोले जाते हैं। बद्री विशाल के कपाट खुलने एवं बंद होने दोनों प्रक्रियाएं बेहद रोचक है। दरअसल बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी को टिहरी के राजदरबार में घोषित होती है।
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की यह प्रकिया श्री बद्रीनाथ धाम के डिमरी पुजारी समुदाय की शीर्ष पंचायत श्री बद्रीनाथ डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के अध्यक्ष आशुतोष डिमरी जी बताते हैं कि…
बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के तट पर दो पर्वतों के बीच स्थित है, जिनके नाम नर और नारायण हैं। इस धाम में भगवान विष्णु के 24 स्वरूपों में से एक नर-नारायण भगवान की पूजा की जाती है। कपाट खुलने के सन्दर्भ में बात करें तो इस धाम के कपाट तीन चाबियों से खोले जाते हैं और तीनों चाबियां अलग-अलग लोगों के पास सुरक्षित रखी जाती है। द्वार बंद करते समय भगवान विष्णु के शालग्रामशिला से बनी मूर्ति पर घी का लेप लगाया है। कपाट खुलने के बाद यदि श्रीहरि की प्रतिमा पर घी यथास्थिति में है तो यह साल सभी के लिए खुशियों से भरा रहेगा, ऐसी मान्यता है। लेकिन घी सूखा हुआ है तो इसे संकट या सूखा का संकेत माना जाता है।
बद्रीनाथ धाम में नहीं बजाया जाता है शंख
बद्रीनाथ धाम में शंख बजाने पर रोक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम में बने तुसली भवन में तप में लीन थीं। उसी दौरान भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नमक दैत्य का वध किया था। विजय के उपरांत शंख नाद करने की परम्परा बहुत पुरानी। लेकिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की तपस्या भंग नहीं करना चाहते थे, जिस वजह से उन्होंने शंखनाद नहीं किया। तब से लेकर यहां शंख नहीं बजाया जाता है।