आज उत्तराखंड में मनाया जा रहा हरेला, जानिए इसका महत्व और परंपरा

1
510

देहरादून: आज पूरे उत्तराखंड में हरेला बड़े धूमधाम से मनाया जाता है “उत्तराखंड बुलेटिन” परिवार की ओर से आप सभी को हरेला त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं इसी के साथ आपको बताते चले की आखिर हरेला क्यों मनाया जाता है तो आप भी पढ़ें….

ये भी पढ़ें:NCPEDP-एमफैसिस यूनिवर्सल डिजाइन अवार्ड्स 2021 का नामांकन शुरू, आवेदन की ये है अंतिम तिथि

उत्तराखंड की धरती पर ऋतुओं के अनुसार कई अनेक पर्व मनाए जाते हैं । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं , वहीं पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए, इन्हीं खास पर्वो में शामिल, हरेला उत्तराखंड में एक लोकपर्व है। हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से हैं। यह पर्व वर्ष में तीन बार आता हैं।पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरा व् वर्ष का आखिरी पर्व हरेला आश्विन मास में मनाया जाता हैं।

चैत्र मास में – प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है।

श्रावण मास में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। आश्विन मास में – आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।

उत्तराखंड के लोगो द्वारा श्रावण मास में पढने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता हैं क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज एक रिंगाल को छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोई जाती हैं| इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। 9 वें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है। और विधि अनुसार घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता हैं।

हरेला चढ़ाते समय बड़े- बुजुर्गो द्वारा आशीर्वाद कुछ इस प्रकार दी जाती है

जी रया ,जागि रया ,

यो दिन बार, भेटने रया,

दुबक जस जड़ हैजो,

पात जस पौल हैजो,

स्यालक जस त्राण हैजो,

हिमालय में ह्यू छन तक,

गंगा में पाणी छन तक,

हरेला त्यार मानते रया,

जी रया जागी रया.

हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो।

यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता हैं गाँव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोई जाती हैं। और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं।

श्रावण मास में मनाया जाने वाला हरेला क्यों खास हैं?

सावन का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह महिना भगवान शिव को समर्पित है। और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है। इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है। और उत्तराखंड की भूमि को तो शिव भूमि (देवभूमि) ही कहा जाता है। क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान यही देवभूमि कैलाश (हिमालय) में ही है। इसीलिए श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती हैं। (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है। जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है । हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना हरेले से की जाती है। और इस पर्व को शिव पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here