देहरादून/थलीसैंण: जहाँ एक ओर पूरे देश में दीपावली की रौशनी घर-आँगन में फैली है, वहीं उत्तराखंड के गेस्ट टीचरों के घरों में मायूसी और अंधकार पसरा हुआ है। राज्य सरकार ने इस बार गेस्ट टीचरों को जो ‘तोहफा’ दिया है, वह स्थायित्व या वेतन वृद्धि नहीं, बल्कि सेवा समाप्ति का फरमान है।
1100 से अधिक TET पास गेस्ट टीचर दीपावली के ठीक पहले अपनी नौकरी से बाहर कर दिए गए हैं। वर्षों से शिक्षा विभाग में अल्प मानदेय पर काम कर रहे ये शिक्षक अब बेरोजगारी के कगार पर खड़े हैं। शिक्षा मंत्री द्वारा मंचों से बार-बार “गेस्ट टीचरों के लिए नीति बनाने” की बातें कही गईं, लेकिन धरातल पर तस्वीर इसके बिलकुल उलट नजर आ रही है।
10 साल की सेवा, फिर भी कोई स्थायीत्व नहीं…
2015 में मेरिट के आधार पर चयनित 6,214 गेस्ट टीचरों ने बीते 10 वर्षों में प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में सेवा दी। इन शिक्षकों ने शत-प्रतिशत बोर्ड परीक्षा परिणाम दिए, चुनाव ड्यूटी, डेटा एंट्री, प्रशिक्षण, खेलकूद आयोजनों जैसे सभी विभागीय कार्यों को पूरी निष्ठा से निभाया। इसके बावजूद इनकी सेवाओं को केवल एक ‘व्यवस्था’ के रूप में देखा गया।
दोहरी नीति: कहीं 12 माह वेतन, कहीं 10 माह ही…
वर्तमान में गेस्ट टीचरों को ₹25,000 मासिक मानदेय दिया जा रहा है, लेकिन कुछ जिलों में 12 माह तो कुछ में सिर्फ 10 माह का वेतन ही दिया जा रहा है। थलीसैंण ब्लॉक में तो सबसे पहले वेतन कटौती शुरू हुई थी। वहाँ के गेस्ट टीचरों का कहना है कि जब से उन्होंने सेवा शुरू की है, तब से ही उनके साथ दोहरे मापदंड अपनाए गए।
‘बंपर तोहफा’ या मानसिक आघात?
दीपावली के इस मौके पर शिक्षक समाज को उम्मीद थी कि सरकार कोई स्थायी नीति लाएगी, लेकिन इसके स्थान पर सैकड़ों शिक्षकों की नौकरी ही समाप्त कर दी गई। इससे पूरे प्रदेश के गेस्ट टीचरों में रोष और पीड़ा है।
“यह कैसा तोहफा है, जहाँ दीये जलाने से पहले चूल्हा जलाने की चिंता सताने लगी है?”, – ऐसा कहना है एक महिला गेस्ट टीचर का, जिनकी नौकरी दीपावली से ठीक पहले चली गई।
शिक्षक संघों की माँग…
गेस्ट टीचरों के समर्थन में विभिन्न शिक्षक संघों ने आवाज़ उठाई है और राज्य सरकार से स्पष्ट नीति, स्थायीत्व और 12 माह के वेतन की माँग की है। यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो आने वाले दिनों में वृहद आंदोलन की चेतावनी दी गई है।