अब मिलेगी उत्तराखंडी उत्पादों को वैश्विक पहचान, जानिए क्या है खास…!

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देहरादून:  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘वोकल फार लोकल’ के नारे को धरातल पर आकार देने की दिशा में उत्तराखंड तेजी से कदम बढ़ा रहा है। राज्य के एक साथ सात उत्पादों को भौगोलिक संकेतांक (जीआइ) का टैग मिलना इसकी तस्दीक करता है।

इसके साथ ही यहां के ऐसे उत्पादों की संख्या बढ़कर अब आठ हो गई है। यही नहीं, 11 और उत्पादों का जीआइ टैग लेने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है। विशेष भौगोलिक पहचान का यह टैग मिलने से जहां इन उत्पादों की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग होने से बाजार में इनकी मांग बढ़ेगी, वहीं बेहतर दाम मिल सकेंगे। जाहिर है इससे यहां की आर्थिकी सशक्त होगी।

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विषम भूगोल और जलवायु वाले उत्तराखंड के कृषि, हस्तशिल्प आदि से जुड़े स्थानीय उत्पाद खासे पसंद किए जाते हैं, लेकिन पहचान का संकट इनके आगे बढ़ने की दिशा में बड़ी बाधा रहा है। इसे देखते हुए सरकार ने यहां के उत्पादों की जीआइ टैगिंग के लिए कसरत शुरू की। पांच साल पहले उत्तराखंड के तेजपात को पहला जीआइ टैग मिला। इसके बाद प्रयास तेज किए गए और वर्ष 2019 में सात नए उत्पादों को जीआइ टैग दिलाने के लिए आवेदन किया गया, जो अब जाकर मिला है।

 

भौगोलिक संकेतांक यानी जीआइ टैग एक प्रकार का लेबल है। इसके माध्यम से किसी उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। टैग से इस बात की सुरक्षा प्रदान की जाती है कि जो उत्पाद जिस भौगोलिक क्षेत्र में पैदा होता है, उसके नाम की नकल कोई अन्य व्यक्ति, संस्था या देश नहीं कर सकता। स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग में जीआइ टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

वस्तु पंजीकरण और सरंक्षण एक्ट 1999 के तहत केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग संवद्र्धन और आंतरिक व्यापार विभाग जीआइ टैग जारी करता है। इसके लिए जिस भौगोलिक क्षेत्र में जिस उत्पाद की उत्पत्ति हुई है, उसके लिए वहां की कोई संस्था, सोसायटी, विभाग व एफपीओ द्वारा आवेदन किया जाता है। फिर गहन परीक्षण करने के बाद मंत्रालय जीआइ टैग का प्रमाणपत्र जारी करता है। एक बार जीआइ टैग मिलने पर वह 10 वर्ष के लिए मान्य होता है। उसके बाद नवीनीकरण करना होगा।

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