देवभूमि उत्तराखंड में मां दुर्गा विभिन्न रूपों में कहीं पर्वत शिखरों पर तो कहीं नदी किनारे विराजमान हैं और ये स्थान सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्हें सिद्धपीठ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां माता भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। हम आपको ऐसे 11 सिद्धपीठों के बारे में बता रहे हैं, जहां नवरात्रों के दौरान जाकर आप अपनी इच्छाएं पूरी कर सकते हैं।
चंडी देवी मंदिर (हरिद्वार)
चंडी देवी मंदिर मां दुर्गा के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। देश के विख्यात धार्मिक स्थलों में शामिल चंडी देवी मंदिर नील पर्वत की ऊंचाई पर स्थित है।मान्यता है कि इस मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्ति को आठवीं शताब्दी में महान संत आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। कहा जाता है कि माता का यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। अन्य प्रसिद्ध मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी एक विशेष पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है, जो इसे भक्तों के बीच अत्यधिक पूजनीय बनाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब शुम्भ और निशुम्भ नामक दानव देवताओं पर अत्याचार कर स्वर्ग पर कब्जा करना चाहते थे, तब माता पार्वती के तेज से चंडिका देवी प्रकट हुईं और इसी स्थान पर दोनों राक्षसों का वध कर कुछ समय विश्राम किया।
मनसा देवी मंदिर (हरिद्वार)
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री माना जाता है, जिनका प्रादुर्भाव उनके मस्तक से हुआ, इसलिए उन्हें ‘मनसा’ नाम मिला। नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजी जाने वाली मनसा देवी का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है, जहां उन्हें दसवीं देवी माना गया है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब राक्षस महिषासुर ने देवताओं को हराया, तब देवी ने प्रकट होकर उसका वध किया। देवताओं ने देवी से प्रार्थना की कि वे कलियुग में भी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर उनकी विपत्तियों को दूर करती रहें।
नैना देवी मंदिर (नैनीताल)
नैनीताल की नैनी झील पर स्थित नैना देवी मंदिर मां दुर्गा के सती के शक्ति रूप की पूजा का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है, जहां देवी सती की आंखें गिरी थीं, इसलिए यहां उनकी आंखों के रूप में पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में तीन देवताओं की मूर्तियां हैं। केंद्र में नैना देवी की आंखें, बाईं ओर माता काली और दाईं ओर भगवान गणेश। मंदिर की सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के कारण, देश-विदेश से पर्यटक यहां दर्शन के लिए आते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर (टिहरी)
सुरकंडा देवी मंदिर टिहरी जनपद में सुरकुट पर्वत पर 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां देवी काली की प्रतिमा स्थापित है, जिसके बारे में पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है।कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान शिव को अपने वर के रूप में चुना, लेकिन उनके पिता राजा दक्ष ने उन्हें यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। यज्ञ में शिव का अपमान सुनकर सती ने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव के दुख और क्रोध को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया जो विभिन्न स्थानों पर गिरे। इस स्थान पर सती का सिर गिरा, जिसे सुरकंडा के नाम से जाना जाता है। मंदिर में भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है और यह धार्मिक यात्रा का प्रमुख स्थल है।
कसार देवी मंदिर (अल्मोड़ा)
कसार देवी मंदिर अल्मोड़ा के कसार पर्वत पर स्थित है और इसे अद्वितीय चुंबकीय शक्ति का केंद्र माना जाता है। कहा जाता है कि यहां मां दुर्गा साक्षात प्रकट हुई थीं। इस शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि यह भारत की एकमात्र जगह है जहां चुंबकीय शक्तियां मौजूद हैं। मंदिर के आसपास भू-चुंबकीय पिंडों की उपस्थिति इसे विशेष बनाती है और इसे वैन एलेन बेल्ट के अंतर्गत रखा गया है। यहां तक कि NASA के वैज्ञानिक भी इस स्थान की शक्तियों की खोज में आए थे, लेकिन वे अपने प्रयासों में असफल रहे। कसार देवी मंदिर में आने वाले भक्त मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। यह मंदिर हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर कसार मेले का आयोजन करता है, जहां हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंदिर की अद्वितीयता और शक्तियों के कारण यह उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक बन चुका है।
नंदा देवी मंदिर (चमोली)
जनपद चमोली के नंदानगर घाट क्षेत्र में मां भगवती नंदा का सिद्धपीठ स्थित है, जहां मां नंदा देवी चतुर्भुज शिलामूर्ति के रूप में विराजमान हैं। उनकी डोली कुरुड़-बधाण और दशोली रूपों में हर साल वार्षिक लोकजात यात्रा में बधाण क्षेत्र आती है। नंदा देवी राज राजेश्वरी, किरात, नाग, और कत्यूरी जातियों की कुलदेवी मानी जाती हैं। मंदिर के पुजारी अनुसार नंदा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूरी होती है, विशेषकर नवरात्रों में। यहां आने वाले भक्तों को मानसिक शांति और दिव्य आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, जिससे उनकी जीवन की कठिनाइयों में राहत मिलती है।
दूनागिरि मंदिर (द्वाराहाट)
अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से 20 किलोमीटर दूर दूनागिरी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। पौराणिक कथा के अनुसार जब हनुमान लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे, तो उसका एक टुकड़ा यहीं गिरा, जिससे इस स्थान का नाम ‘दूनागिरी’ पड़ा।यह मंदिर मल्ला सुराना, द्वाराहाट के शांत वातावरण में हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित है, जो इसे एक सुखद विश्राम स्थल बनाता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए 365 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो यात्रा में रोमांच भरती हैं। दूनागिरी को वैष्णव देवी मंदिर के बाद शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है, और यहां श्रद्धालुओं का लगातार आना-जाना लगा रहता है। इस पवित्र स्थान पर पहुंचकर भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सुकून का अनुभव होता है।
पूर्णागिरि मंदिर (टनकपुर)
पूर्णागिरी मंदिर टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह 108 सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है।मान्यता है कि इस स्थान पर सती माता की नाभि गिरी थी और इसलिए इसे पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के किनारे स्थित है और यहां चमत्कारों की भी कहानियां प्रचलित हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या काफी अधिक रहती है और पूजा-पाठ का आयोजन जोर-शोर से किया जाता है। चैत्र नवरात्रि यहां का सबसे बड़ा त्योहार होता है, जिसमें एक भव्य मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां भारत के अनगिनत भक्त शामिल होते हैं। इस पवित्र स्थान पर आने से भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूति और शांति का अनुभव होता है।
चन्द्रबदनी मंदिर (देवप्रयाग)
देवप्रयाग से 35 किलोमीटर दूर मां चन्द्रबदनी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर श्रीनगर टिहरी मोटर मार्ग पर स्थित है और मान्यता है कि माता सती का कटि भाग यहां चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से सिद्धपीठ की स्थापना हुई जिससे इसका नाम चन्द्रबदनी पड़ा। मंदिर में मां भगवती की मूर्ति के दर्शन नहीं किए जा सकते; पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां को स्नान कराते हैं। आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की थी। मंदिर के गर्भगृह में देवी मां का श्रीयंत्र है, जिसके ऊपर एक चांदी का बड़ा छत्र रखा गया है। इस सिद्धपीठ में आने वाले श्रद्धालुओं को मां कभी खाली हाथ नहीं जाने देतीं जिससे यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
अखिलतारिणी मंदिर (लोहाघाट)
लोहाघाट में स्थित मां अखिलतारणी मंदिर को उप शक्तिपीठ माना जाता है, जो घने देवदार वनों के बीच स्थित है। मान्यता है कि यहां पांडवों ने घटोत्कच का सिर पाने के लिए मां भगवती से प्रार्थना की थी। यह शक्ति-पीठ हजारों वर्षों से भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस पावन धाम में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु का मां जगदम्बा की कृपा से हर मनोरथ पूर्ण होता है। यहां मणिद्वीपाधिवासिनी मां महाशक्ति को भक्तों द्वारा विभिन्न नामों, जैसे अखिलतारिणी, उल्का, भीमा, सिद्धिदात्री और कालिकाभवानी से पूजा जाता है। हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त जन शामिल होते हैं। इस मेले के दौरान भव्य रथ यात्रा और डोली यात्रा निकाली जाती है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।
बाल सुंदरी मंदिर (काशीपुर)
काशीपुर में स्थित उज्जैनी शक्ति पीठ भगवती बाल सुंदरी का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे शक्तिपीठ माना जाता है। इसका निर्माण औरंगजेब के सहयोग से हुआ था। जब औरंगजेब की बहन बीमार पड़ी, तब मां बाल सुंदरी ने सपने में दर्शन दिए, जिसके बाद मंत्रिमंडल ने काशीपुर के मठ से मन्नत मांगी। जब मन्नत पूरी हुई तो औरंगजेब ने इस मंदिर का निर्माण कराया।यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है और माता का नाम उनके बाल रूप में की गई लीलाओं के कारण पड़ा। मान्यता है कि जब भगवान शिव माता सती के जलते शरीर को लेकर लोक में भ्रमण कर रहे थे, तो माता सती की बांह का अंग यहां गिरा, जिससे यह शक्तिपीठ बना। चैत्र मास में यहां होने वाला चैती मेला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला है, जिसमें देशभर से श्रद्धालु आते हैं।