देश की रक्षा करते हुए मेरठ के मेजर मयंक शहीद हो गए हैं। इस खबर से घर में कोहराम मच गया। आपको बता दें कि कंकरखेड़ा शिवलोकपुरी निवासी मेजर मयंक विश्नोई शनिवार की सुबह शहीद हो गए। उनको सिर पर गोली लगी थी। वो अस्पताल में भर्ती थे लेकिन शनिवार को वो जिंदगी की जंग हार गए और देश के लिए शहीद हो गए। आपको बता दें कि शहीद मजेर 2010 में ही आईएमए से पास आउट हुए थे।
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आपको बता दें कि मेरठ के कंकरखेड़ा, शिवलोकपुरी निवासी मेजर मयंक विश्नोई जम्मू कश्मीर के शोपियां में आतंकियों से मुठभेड़ में 27 अगस्त को घायल हो गए थे। तब से उनका उधमपुर के मिलिट्री अस्पताल में इलाज चल रहा था। शनिवार सुबह वो शहीद हो गए। उनका पार्थिव शरीर आज मेरठ उनके घर लाया गया और सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। आपको बता दें कि मेजर मयंक विश्नोई राजपूताना राइफल्स में तैनात रहे।
मेजर के परिवार में पिता वीरेन्द्र विश्नोई, माता मधु विश्नोई, पत्नी स्वाति विश्नोई और दो बहनें है जिनका रो रोकर बुरा हाल है। शहीद मेजर के पिता सेना से सूबेदार पद से रिटायर हैं। सूबेदार वीरेंद्र विश्नोई की प्रेरणा से ही उनका बेटा सेना में गया और 2010 को देहरादून आईएमए से पास आउट हुए। पूरे परिवार को मयंक की शहादत पर गर्व है।मेजर की 2018 में शादी हुई थी।
मेजर मयंक विश्नोई अपनी बहन से भी कहते थे देश के लिए शहीद होने का कलेजा हर किसी में नहीं होता। मैं एक सैनिक के बेटे के साथ सेना का मेजर भी हूं। देश के दुश्मनों को मौत के घाट उतारते वक्त अगर खुद शहीद हो गए तो, इसमें फिक्र करने की क्या बात है। बहन, जिस दिन तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, उस दिन देखना सभी मुझे जयहिंद करेंगे। मेजर मयंक विश्नोई की इन बातों को याद कर बताते हुए शहीद की दोनों बहनें फफक-फफक कर रो पड़ी।
आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए मेजर मयंक विश्नोई इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन परिजन उनकी कही बातों को याद करते हुए बिलख-बिलख कर रो रहे हैं। मेजर मयंक विश्नोई की बहन तनु के आठ वर्षीय बेटे से अक्सर बातचीत होती थी। मेजर अपनी ड्यूटी बारे में भांजे को बताते रहते थे। भांजा अपनी मासूमियत से मेजर मयंक से कहता था कि मामा, तुम रात के समय जंगल में मत जाया करो, जंगल में बदमाश रहते हैं। किसी ने गोली मार दी तो फिर क्या होगा? तब मेजर अपने भांजे से कहते थे कि देश के दुश्मनों को नहीं छोडूंगा, चाहे सिर में गोली क्यों न लग जाए। मेजर ने जो बात अपने भांजे से कहीं, शायद ईश्वर को वहीं मंजूर था। 27 अगस्त को आतंकियों से मुठभेड़ में मेजर के सिर में गोली लगी थी।