बात मई 1999 की है जब स्थानीय गड़रियों ने भारतीय सेना को सूचना दी कि कारगिल में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की गयी है, जब 5 सदस्यी भारतीय सेना का गस्ती दल वहां पहुंचा तो उन सबको बंधी बनाकर मार डाला गया, उसके बाद भारत और पाकिस्तान में कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था। पाकिस्तान का पहाड़ की उंचाई पर कब्ज़ा था, लेकिन हमारी सेना ने दुश्मनों पर इतना तगड़ा प्रहार किया कि पाकिस्तानी फौज के पाँव उखड़ने लगे और फिर भारतीय फौज ने एक-एक करके दुबारा कारगिल की चोटियों पर अपना कब्ज़ा करना शुरू कर दिया। उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की घोषणा की और आज ही के दिन यानी 26 जुलाई को ही आधिकारिक रूप से कारगिल युद्ध समाप्त हुआ था।
जब कभी भी भारत माँ की तरफ दुश्मनों की बुरी नजर पड़ी है तब-तब अगर जो वीर सबसे आगे खड़े दिखते हैं उनमें उत्तराखंड के सैनिक हमेशा अग्रिम पंक्ति पर खड़े दिखाई पड़ते हैं, देवभूमि का सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम ऐसे ही असंख्य किस्सों से भरा पड़ा है। कारगिल के इस युद्ध में भी हर मोर्चे पर उत्तराखंड के वीर जाबांज दुश्मनों के दांत खट्टे कर रहे थे, कारगिल के इस पूरे युद्ध में भारत ने अपने लगभग 527 वीर जवान खोये थे और इसमें से अकेले उत्तराखंड से ही 75 वीरों ने शहादत दी थी। इन 75 जाबाजों ने वीरगति को प्राप्त होने से पहले सैकड़ों दुश्मनों को ढेर कर दिया था।
अपने 75 सैनिकों की शहादत को आज लगभग 22 साल बाद भी उत्तराखंड भुला नहीं पाया है, उस समय जब हेलिकॉप्टर के द्वारा 9 वीर सैनिकों के शव उत्तराखंड की धरती पर पहुंचे थे तो पूरी देवभूमि के लोग अपनी आँखों से बहते आंसू को नहीं रोक पाये थे और उस समय पूरा उत्तराखंड इन जाबाजों की याद में रो पड़ा था। आज भी उत्तराखंड के लोगों में देशभक्ति का जज्बा पूरे देश में सबसे आगे है यही कारण है कि भारतीय सेना का हर पांचवा सख्स उत्तराखंड से होता है और अगर बात इन्डियन मिलट्री अकेडमी की करें तो यहाँ से निकलने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से होता है।