दुर्गा माता का चौथा स्वरूप कूष्मांडा का है। लौकिक स्वरूप में मां बाघ की सवारी करती हुईं, अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजटित स्वर्ण मुकुट धारण करने वाली एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा हैं।
इसके अन्य हाथों में कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष-बाण और अक्ष माला विराजमान हैं। इन सब उपकरणों को धारण करने वाली कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।
अपनी मंद हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण माता के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा। नवरात्र में चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अत: पवित्र मन से पूजा उपासना के कार्य में लगना चाहिए।
मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम मार्ग है। माता कूष्मांडा की उपासना मनुष्य को सुख-समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। लौकिक और पारलौकिक उन्नति के लिए मां कूष्मांडा की उपासना करनी चाहिए।