देवभूमि के इस मंदिर में गढ़ा है शिव जी का त्रिशुल, भक्तों द्वारा छूने पर होती है कंपन

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चमोली:  देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का वास है। यहां के हर कोनों में आस्थाओं का स्थान है। उत्तराखंड जितना मंदिरों के लिए प्रचिलित है, उतना ही अपनी खूबसूरती के लिए भी प्रचलित है। वहीं आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके त्रिशुल, भक्तों द्वारा छूने पर होती है कंपन। जी हां उत्तराखंड के हसीन वादियों में चमोली जिले गोपेश्वर में शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है।

गोपीनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड के चमोली जिले गोपेश्वर में शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह गोपेश्वर शहर के एक भाग में गोपेश्वर गांव में स्थित है। इस मंदिर में एक अद्भुत गुंबद और 24 दरवाजे हैं । इस पवित्र स्थल के दर्शन मात्र से ही भक्त अपने को धन्य मानते हैं एवं भगवान सारे भक्तों के समस्त कष्ट दूर कर देते हैं , गोपीनाथ मंदिर , केदारनाथ मंदिर के बाद सबसे प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है।

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मंदिर पर मिले भिन्न प्रकार के पुरातत्व एवं शिलायें इस बात को दर्शाते है कि यह मंदिर कितना पौराणिक है। मंदिर के चारों ओर टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष प्राचीन काल में कई मंदिरों के अस्तित्व की गवाही देते हैं। मंदिर के आंगन में एक त्रिशूल है, जो लगभग 5 मीटर ऊंची है, जो आठ अलग-अलग धातुओं से बना है, जो कि 12 वीं शताब्दी तक है। यह 13 वीं सदी में राज करने वाले नेपाल के राजा अनकममाल को लिखे गए शिलालेखों का दावा करता है।

पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर में एक स्थान पर त्रिशूल तय हो गया था, यह त्रिशुल शिवजी का था। लेकिन यह कैसे स्थापित हुआ इसके पीछे की कहानी के बारे में आपको बताते हैं। पुराणों में गोपीनाथ मंदिर भगवान शिवजी की तपोस्थली थी। इसी स्थान पर भगवान शिवजी ने अनेक वर्षो तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि देवी सती के शरीर त्यागने के बाद भगवान शिव जी तपस्या में लीन हो गए थे और तब “ताड़कासुर” नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हा-हा-कार मचा रखा था और उसे कोई भी हरा नहीं पा रहा था। तब ब्रह्मदेव ने देवताओं से कहा कि भगवान शिव का पुत्र ही ताड़कासुर को मार सकता है। उसके बाद से सभी देवो ने भगवान शिव की आराधना करना शुरु कर दिया, लेकिन तब भी शिवजी तपस्या से नहीं जागे।

उसके बाद भगवान शिव की तपस्या को समाप्त करने के लिए इंद्रदेव ने यह कार्य कामदेव को सौपा ताकि शिवजी की तपस्या समाप्त हो जाए और उनका विवाह देवी पार्वती से हो जाए और उनका पुत्र राक्षस ताड़कासुर का वध कर सके। जब कामदेव ने अपने काम तीरों से शिवजी पर प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और शिवजी ने क्रोध में जब कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका, तब वह त्रिशूल उसी स्थान में गढ़ गया। उसी स्थान पर वर्तमान समय में गोपीनाथ मंदिर स्थापित हो गया है।

अष्टधातु से बने इस त्रिशूल पर किसी भी मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वर्तमान समय में यह एक आश्वर्यजनक बात है। यह भी मान्यता है कि कोई भी मनुष्य अपनी शारीरिक शक्ति से त्रिशूल को हिला भी नहीं सकता, यदि कोई सच्चा भक्त त्रिशूल को कोई सी ऊंगली से छू लेता है, तो उसमें कंपन पैदा होने लगती है। भगवान गोपीनाथजी के इस मंदिर का विशेष महत्व माना जाता है। हर रोज सैकडो़ श्रद्धालू यहां भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर में शिवलिंग ही नहीं बल्कि परशुराम और भैरव जी की प्रतिमाएं भी स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है और मंदिर से कुछ ही दूरी पर वैतरणी नामक कुंड भी बना हुआ है, जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है।

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