उत्तराखंड के हर त्यौहार और शादी-समारोह में एक पकवान बनती है जो भूले से भी नहीं भुलाई जाती…आज भी हर शादी-समारोह में सबसे पहले अरसे ही बनते हैं. अक्सर हम जब गांव की शादी में जाते है तो सुबह-सुबह गांव की महिलाओं को भीगे हुए चावल और दाल पीसने के लिए बुलाया जाता है और पुरुष स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं जिसमें गुड़ की मिठास, सौंफ, चावल का आटा मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते है गढ़वाल में शादी समारोह में अरसे क्यों बनते हैं और ये चलन कहां से आया..तो आईये आपको बताते है इसका इतिहास…
अरसे का कनेक्शन बेहद धार्मिक भी है। दरअसल जगतगुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ही ब्राह्मणों को रखा जाता है।
कहा जाता है कि नवीं सदी में दक्षिण भारत से ये ब्राह्मण गढ़वाल में अरसालु लेकर आए थे। क्योंकि ये काफी दिनों तक चल जाता है, तो इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे धीरे इन ब्राह्मणों ने ही स्थानीय लोगों को ये कला सिखाई। गढ़वाल में ये अरसालु बन गया अरसा। 9वीं सदी से अरसालु लगातार चलता आ रहा है, यानी इतिहासकारों की मानें तो बीते 1100 सालं से गढ़वाल में अरसा एक मुख्य मिष्ठान और परंपरा का सबूत था।
ये दुनिया की मीठी चीजों और मिठाई में शुमार है..गढ़वाल में गन्ने का गुड़ इस्तेमाल होता है और कर्नाटक में खजूर का गुड़ इस्तेमाल होता है। बस यही थोड़ा सा फर्क है स्वाद में। धीरे धीरे ये गढ़वाल का यादगार व्यंजन बन गया। इसेक अलावा अरसा तमिलनाडु, केरल, आंध्र, उड़ीसा और बंगाल में भी पाया जाता है। कहीं इसे अरसालु कहते हैं और कहीं अनारसा। लेकिन आज बले ही लोग गांव से पलायन कर गए हो लेकिन आज आप किसी गढ़वाली से पूछेंगे कि अरसा क्या होता है तो सबको इसके बारे में पता होगा. असरा केवल हमारी संस्कृति ही नहीं बल्कि शरीर के लिए बेहद की पौष्टिक आहार है। शरीर में शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल होता था।