रामनगर: वैसे तो उत्तराखंड से कई मान्यताएं जुड़ी हैं, आज हम आपको नैनीताल जिले में स्थित रामनगर से लगभग 22 किलोमीटर दूर सीतावनी क्षेत्र में ले चलते हैं, इस जगह पर माता सीता ने कई सालों तक वास किया, इससे भी बड़ी बात की इस धरती पर भगवान राम के वीर पुत्रों लव और कुश ने भी जन्म लिया था।
अब उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार ने श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक अवसर पर उत्तराखंड के पवलगढ़ कंजर्वेशन रिज़र्व का नाम बदल कर सीताबनी कंजर्वेशन रिज़र्व रख दिया है। सीतावनी कंजर्वेशन रिज़र्व में माँ सीता का पौराणिक मंदिर और महर्षि वाल्मीकि आश्रम है जिसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग करता है और यहां जाने की अनुमति वन विभाग देता है।ये जंगल 5824.76 हैक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है जो टाईगर, हाथी, पक्षी और तितलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां बड़ी संख्या में पर्यटक और तीर्थ यात्री भी जाते है। इस जंगल को सीताबनी कंजर्वेशन रिजर्व घोषित किए जाने की मांग, रामनगर और आसपास के कई छोटे बच्चो ने पत्र लिख कर मुख्यमंत्री धामी से की थी, जिस पर वन विभाग के अधिकारियों को सीएम धामी ने निर्देशित किया था, जिस पर शासनादेश जारी कर दिया गया।सीएम पुष्कर धामी ने कहा है कि प्रभु राम का उत्तराखंड की देव भूमि से संबंध रहा है इसी क्रम में पवल गढ़ कंजर्वेशन रिज़र्व का नाम बदल कर अब सीतावनी किया गया है।
माता सीता ने किया था वास
सीताबनी को लेकर कई प्रकार की किवदंतियां हैं। रामनगर वन प्रभाग के अंर्तगत आने वाला यह क्षेत्र न केवल आध्यत्मिक रूप से बल्कि कॉर्बेट का इलाका होने के लिहाज से भी, पर्यटन के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा चुका है।
दरअसल, सीताबनी मन्दिर को त्रेता युग का बताया जाता है। हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक आज भी इस मंदिर से बाल्मीकि समाज के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। माता सीता जी का यह मंदिर घनघोर जंगल के बीच स्थापित है। सीता मां से जुड़ी कहानियों के कारण ही इस जंगल को सीतावनी कहा गया है।
कुमाऊं के मशहूर लेखक बद्रीदत्त पाडे जी की कुमाऊं के इतिहास बुक में इसका जिक्र किया गया है। महर्षि विश्वामित्र के कहने पर एक बार श्री राम, लक्ष्मण और मां जानकी रामनगर के क्षेत्र में भ्रमण पर आए थे। वन की सुंदरता देख सीता जी इतनी मोहित हो गयी कि उन्होंने श्री राम से कहा कि बैशाख यानि …..के महीने में हमें यहाँ रहना चाहिए और कोशिकी यानि अब (कोशी नदी) में स्नान करना चाहिए। वह बैशाख में यहीं रहे जहां पानी के दो झरने निकल आए।
लव – कुश ने भी लिया था जन्म
दूसरी मान्यता के अनुसार यहाँ महर्षि बाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था। इसी के पास स्थित एक स्थान है लक्ष्मणपुरा, लक्ष्मणपुरा वह स्थान बताया जाता है जिस समय भगवान राम ने देवी सीता का त्याग किया था, तो लक्ष्मणजी देवी सीता को अपने रथ से उताकर वन में छोड़ गए थे। तब उदास सीता ने बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में शरण ली थी तो उस समय देवी सीता गर्भवती थीं। ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में ही इन्होंने अपने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया था और इनका पालन-पोषण किया था। आश्रम के पास ही रामपुरा नामक स्थान है। बताया जाता है कि यही वह स्थान है, जहां लव-कुश ने भगवान राम द्वारा छोड़ा गया अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ा था। इसी दौरान सीता जी यही रहीं। अंत मे इसी स्थान पर धरती में समा गईं।
सीतावनी का रामायण, स्कंद पुराण और महाभारत में भी उल्लेख
रामायण, स्कंद पुराण और महाभारत में भी सीतावनी का उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण में कोसी नदी के बाईं ओर शिवगिरि पर्वत है। जिसे सिद्ध आत्माओं और गन्धर्वों का विचरण स्थल कहा गया है। मन्दिर में जल की तीन धाराएं हैं जिन्हें राम, लक्ष्मण और सीता कहा गया है। जिनका जल गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गुनगुना रहता है। भगवान महर्षि बाल्मीकि का आश्रम होने के कारण यह बाल्मीकि समाज का तीर्थ स्थल भी है। साल में एक बार बाल्मीकि समाज द्वारा यहाँ विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
सीतावनी मन्दिर क्षेत्र ऐतिहासिक होने के कारण पुरातत्व विभाग के आधीन है। हालांकि यह क्षेत्र वन विभाग के अंतर्गत आने के कारण यहाँ प्रवेश के लिए वन विभाग से अनुमति ली जाती है। ऐसा इसलिए यहां बाघ, हाथी, गुलदार के अलावा कई प्रकार के वन्यजीव दिखाई देते हैं। अब सीतावनी क्षेत्र धार्मिक महत्व के बाद पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। हर साल हजारों पर्यटक इस क्षेत्र में आने लगे है। जिससे वन विभाग को अच्छा खासा राजस्व भी प्राप्त होने लगा है।