हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास पर्व माना जाता है। बता दें कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इस बार यह तिथि 26 मई के दिन पड़ रही है।
सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सौभाग्य के लिए वट सावित्री व्रत करती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, माता सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से वापस पाया था। तभी से वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश- तीनों देवों का वास होता है।
अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12:11 बजे शुरू होगी और 27 मई को सुबह 8:31 बजे समाप्त होगी । व्रत वाले दिन भरणी नक्षत्र, शोभन योग और अतिगण्ड योग का शुभ संयोग बन रहा है. इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक रहेगा। सबसे खास बात यह है कि इस बार वट सावित्री व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जिससे यह सोमवती अमावस्या भी बन रही है. यह संयोग अत्यंत दुर्लभ और सौभाग्यशाली माना माना जाता है.
वट सावित्री व्रत की पूजन विधि…
सुहागिन महिलाएं प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर घर की सफाई करें और पवित्र जल का छिड़काव करें।
स्नानादि करने के बाद पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें और सोलह श्रृंगार भी करें।
सास और ससुर का आशीर्वाद लेने के बाद व्रत का संकल्प लें।
इस दिन वट वृक्ष के समीप जाकर अब सिंदूर, जल, अक्षत, तिल, फूल, फूल-माला आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
कच्चे सूत को वट वृक्ष पर कच्चे सूत को 7, 21 या 108 बार लपेटते हुए परिक्रमा करें।
इस दिन वट सावित्री व्रत कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। इससे अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है और पति के ऊपर आने वाले संकट दूर होते हैं।