होली का त्यौहार नजदीक है ऐसे में होली को लेकर पौराणिक मान्यताओं की जानकारी भी होना आज की पीढ़ी के लिए अति आवश्यक है। इसके अलावा इस बार होलिका पूजन का समय क्या होगा और कैसे होली की पूजा करनी चाहिए इस विधि के बारे में भी हम यहां पूरी जानकारी दे रहे हैं।
ये भी पढ़ें:दुखद: छत्तीसगढ़ IED धमाके में उत्तराखंड के राजेंद्र सिंह हुए शहीद
होलिका दहन के बाद अगले दिन होली का पर्व रंग गुलाल और अबीर के साथ मनाया जाता है। पौराणिक काल से चली आ रही मान्यताओं के अनुसार आज भी होली का त्यौहार भारत देश में परंपरागत रूप से पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार होली का त्यौहार 17 व 18 मार्च को मनाया जायेगा। 17 मार्च की रात्रि को होलिका दहन होगा जिसके बाद 18 मार्च को दुलहड़ी रंग की होली खेली जायेगी। होलिका दहन को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं हमारे समाज में हैं। इनमें से एक प्रमुख मान्यता यह है कि नवविवाहिताओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
इस तर्क के पीछे विशेष पारंपरिक कारण बताए गए हैं। क्योंकि होली सकारात्मकता के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपने पुराने गिले शिकवे शिकायतें मिलाकर एक दूसरे से गले मिलकर बधाई देते हैं और पूरे उल्लास के साथ पर्व को मनाने हैं। माना जाता है कि होलिका दहन में हम अपनी नकारात्मकता का दहन करते हैं इससे पूरे साल हम अतिरिक्त उर्जा से भर जाते हैं। जिसका हमारे जीवन पर बेहद प्रभाव पड़ता है। होली के त्यौहार के दिन ही फाल्गुन मास समाप्त हो जाता है और चैत्र मास आरंभ होता है। चैत्र मास ही हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का महीना होता है। होली के त्यौहार को हिन्दू नववर्ष के आगमन के स्वागत के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसारए नवविवाहित स्त्रियों को जलती हुई होलिका नहीं देखनी चाहिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को होलिका की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। होलिका की अग्नि को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है। इसलिए नवविवाहित स्त्रियों को होलिका की जलती हुई अग्नि को देखने से बचना चाहिए।
होलिका दहन इस साल गुरुवार 17 मार्च 2022 को किया जाएगा हालांकि पहन की पूजा का शुभ मुहूर्त 9:20 से 10:30 तक रहेगा ! ऐसे में लोगों को होलिका दहन की पूजा के लिए लगभग 1 घंटे का ही समय मिलेगा ! होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए लेकिन अगर बीच भद्राकाल हो तो होलिका दहन नहीं करना चाहिए !
पूजा विधि
कई जगह होलिका दहन से पहले पूजा भी की जाती है। पूजा करने के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाएं। वहीं पूजा की सामग्री के लिए रोली, फूल, फूलों की मालाए कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, 5 से 7 तरह के अनाज और एक लोटे में पानी रख लें। इसके बाद पूजा करें और अपने सभी कष्टों को होलिका की अग्नि में जलकर भष्म हो जाने की कामना करें।